Fermilab में muon के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट अप्रैल में प्रकाशित किए गए । इस एक्सपेरिमेंट को muon g-2 experiment के नाम से भी जाना जाता है। थिअरी और इस एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट में अगर असहमति कायम रहती है , तो वर्तमान फिजिक्स में बदलाव हो सकते है। इसीलिए ये एक महत्वपूर्ण एक्सपेरिमेंट है । 

Muon g-2 experiment का इतिहास 

पहले Muon g-2 experiment की शुरुवात CERN से हुई , CERN में 1959 में पहला एक्सपेरिमेंट किया गया।1959 से लेकर 1979 तक तीन बार CERN में ये एक्सपेरिमेंट किया गया । इसके बाद Brookhaven National Laboratory जो कि United States में है , यहां muon g-2 experiment किया गया , जो 2001 में खतम हुआ । हर बार जब ये एक्सपेरिमेंट किया गया, तब तब उसकी सटीकता बढ़ाने पर जोर दिया गया। 

फर्मीलॅब (Fermilab) में जो acclerator वो ज्यादा मात्रा में म्यूऑन का उत्पादन कर सकता है।. Brookhaven National Laboratory में एक्सपेरिमेंट के लिए यूज किया हुआ विशाल सुपरकंडक्टिंग इलेक्ट्रोमैग्नेट ( इस मैग्नेट की डायमीटर 50 फुट है) साल 2013 में फर्मीलॅब में लाया गया , ताकि अधिक तीव्र muon बीम का यूज करके एक्सपेरिमेंट किया जा सके। और एक्सपेरिमेंट की सटीकता और बढ़ाई जा सके।

Muon में क्या खास बात है ?

muon इलेक्ट्रॉन की तरह ही एक पॉइंट लाइक पार्टिकल है । जो किसी भी दूसरे पार्टिकल्स से नहीं बना है ।म्यूऑन की काफी सारी प्रॉपर्टीज इलेक्ट्रॉन की तरह ही है, जैसे म्यूऑन का चार्ज -1e और  स्पिन 1/2 है ।

लेकिन म्यूऑन का मास इलेक्ट्रॉन के मास से लगभग 207 गुना ज्यादा होता है। इसी वजह से muon नए प्रकार के वर्चुअल पार्टिकल्स के प्रति संवेदशील होते है।

जब कॉस्मिक रे अर्थ के वातावरण से टकराते है , तब नेचुरली म्यूऑन बनते है।
अभी भी आपके ऊपर कॉस्मिक रे से बने muons की बौछार हो रही है।

 म्यूऑन मटेरियल के आर पार जाते है । पार्टिकल म्यूऑन किसी बहुत ही छोटे मैग्नेट की तरह होते है।

प्रीसेशन क्या है ? -What is precession


Gyroscope_precession
इमेज में gyroscope दिख रहा है, जो ग्रैविटेशनल फील्ड में precession कर रहा है। जैसे कि इमेज में देखा जा सकता है की , gyroscope का एक रोटेशन एक्सिस दूसरे एक्सिस के अराउंड रोटेट हो रहा है। ये इसीलिए होता है , क्युकी पहला रोटेशन एक्सिस ग्रैविटेशनल फोर्स की वजह से torque फील करता है। (Image Source-Google | Image By-Wikimedia)


हम सभी ने स्पिनिंग टॉप देखा है , उसके साथ बचपन में आप काफी बार खेले भी होंगे। अगर टॉप को बिना स्पिन किए उसके टिप पे रखा जाए तो ग्रैविटी की वजह से वो नीचे गिरता है । लेकिन जब टॉप को स्पिन किया जाता है , तब मैजिकली टॉप बिना नीचे गिरे कुछ देर तक उसके टिप पर खड़ा होकर स्पिन होता रहता है। 

  जब टॉप स्पिन होता है तो वो एक एक्सिस के अराउंड रोटेट होता है , जो उसके बॉडी के सेंटर से गुजरता है । समझने के लिए इस एक्सिस को हम फर्स्ट एक्सिस बोलते है। हमारा टॉप ग्रैविटेशनल फील्ड में स्पिन हो रहा है। इसीलिए अगर आप ध्यान से देखेंगे तो टॉप का ये फर्स्ट एक्सिस ग्रैविटी की वजह से और एक एक्सिस के अराउंड रोटेट होता रहता है  । स्पिनिंग बॉडी का एक एक्सिस , दूसरे एक्सिस के अराउंड रोटेट होता है , इस मोशन को ही precession या वॉबल(wobble) बोलते है।


g फैक्टर , मैग्नेटिक मोमेंट और muon का precession


पार्टिकल Muon को इलेक्ट्रॉन कि तरह ही स्पिन होता है। और ये स्पिन एक क्वांटम मैकेनिकल प्रॉपर्टी है। म्यूऑन के इलेक्ट्रिक चार्ज और स्पिन कि वजह से muon को मैग्नेटिक मोमेंट मिलती है । जिसे नीचे दिए गए फॉर्मूला से कैलकुलेट किया जाता है

`\vec\mu=g\frac{e}{2m}\vec{S}`

ऊपर दिए फॉर्मूला में `\mu` मैग्नेटिक मोमेंट है । और e, m,S क्रमशः muon का चार्ज , मास और स्पिन दर्शाता है । g यहां पर g फैक्टर है। फॉर्मूला से हम देख सकते है , की अगर किसी वजह से अगर g फैक्टर की कीमत बढ़ती है , इसका मतलब muon की मैग्नेटिक मोमेंट की कीमत भी बढ़ेगी  (यानी muon के इंटरनल मैग्नेट की स्ट्रेंथ बढ़ेगी)।

मैग्नेटिक मोमेंट की वजह से म्यूऑन किसी बहुत छोटे मैग्नेट की तरह बिहेव करता है । जब म्यूऑन ( muon) को किसी दूसरे मैग्नेट की मैग्नटिक फील्ड में रखा जाता है , तब किसी स्पिनिंग टॉप की तरह ही muon का स्पिन डायरेक्शन ( मैग्नेटिक मोमेंट) मैग्नेटिक फील्ड में प्रीसेशन ( precession) करने लगता है।  

Muon जब एक ही जगह पर ठहरा हुआ हो ( यानी रेस्ट पे हो) , तब मैग्नेटिक फील्ड में म्यूऑन के स्पिन की प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी (precession frequency) नीचे दिए गए फॉर्मूला से निकाली जाती है।

`\omega_{s}=g\frac{eB}{2m}`

ऊपर दिए गए फॉर्मूला में 

`\omega_{s}` Muon की स्पिन प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी है । जो हमे ये  बताती है , कि १ सेकंड में muon का स्पिन एक्सटर्नल मैग्नेटिक फील्ड में कितने  रोटेशन पूरे करता है। 

ऊपर दिए गए फॉर्मूला से हम देख सकते है , की muon की प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी बाहरी मैग्नेट की मैग्नेटिक फील्ड (B) , Muon के चार्ज (e) , मास (m) और g फैक्टर  के उपर निर्भर है । इसमें से चार्ज(e) और मास (m) की वैल्यू constant है। इसका मतलब अगर एक्सटर्नल मैग्नेटिक फील्ड (B) को बढ़ाया गया , तो muon की प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी भी बढ़ेगी ( यानी १ सेकंड में muon का स्पिन ज्यादा रोटेशन पूरे करेगा ) । उसी प्रकार से अगर muon के g फैक्टर की कीमत भी बढ़ती है ,तब भी muon की प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी बढ़ेगी । Muon g-2 experiment में इसीलिए एक्सटर्नल मैग्नेटिक फील्ड को यूनिफॉर्म रखा जाता है (मैग्नेटिक फील्ड की स्ट्रेंथ सभी जगह सेम रखी जाती है )। ताकि अगर muon की प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी बढ़ती है , इसका मतलब muon का g फैक्टर किसी वजह से बढ़ा है।


g-2 एक्सपेरिमेंट के लिए muon कैसे बनाए जाते है ?


Fermilab में एक्सलरेटर का यूज करके हाई एनर्जी प्रोटॉन बनाए जाते है । जब ये हाई एनर्जी प्रोटॉन टारगेट से टकराते है , तब इनकी हाई एनर्जी से काफी सारे पार्टिकल्स बनते है (हम सबको आइंस्टीन का E=`m\c^{2}` इक्वेशन पता है , इस इक्वेशन के अनुसार मास एनर्जी में कन्वर्ट हो सकता है और एनर्जी मास में ) । इनमे से एक होते है पायौन ,इन पायौन का जीवन कुछ ही नैनो सेकंड्स का होता है। इसके बाद पायौन decay होकर म्यूऑन (muon) और न्यूट्रिनो बनाते है। इस रिएक्शन से मिले पायौन का चार्ज पॉजिटिव होता है। इसीलिए पायौन decay होकर मिले muon का चार्ज भी पॉजिटिव होता है , जिन्हे anti Muon भी कहा जाता है ।

पायौन decay होकर जब म्यूऑन बनते है , तब म्यूऑन का स्पिन डायरेक्शन हमेशा muon के मोशन के ऑपोजिट डायरेक्शन में होता है । इन Muons का यूज करके Muons का स्पिन पोलराईज्ड बीम बनाया जाता है , जिसमें हर एक म्यूऑन का स्पिन एक ही डायरेक्शन में पॉइंट करता है ।


स्टोरेज रिंग में म्यूऑन (Muon) के साथ क्या होता है ?


Muon-g-2-magnetic-storage-Ring
फोटो में Fermilab में muon g-2 experiment के लिए यूज कियी हुई सुपरकंडक्टिंग मैग्नेटिक स्टोरेज रिंग है। जिसका डायमीटर 50 फुट है। मैग्नेटिक स्टोरेज रिंग में Muons चक्कर लगाते रहते है । सेम मैग्नेट Brookhaven National Laboratory में किए गए एक्सपेरिमेंट में भी यूज किया गया था।  ( Image Source - Google | Image By-Wikimedia )

इन स्पिन पोलराईज्ड Muons को  सुपरकंडक्टिंग मैग्नेटिक स्टोरेज रिंग में भेजा जाता है , जहां पर मैग्नेटिक फील्ड की वजह से म्यूऑन ( muon) सर्कल में चक्कर भी लगाते रहते है और muon का स्पिन डायरेक्शन रोटेट भी होने लगता है ( प्रिसेशन  करने लगता है )। एक सेकंड में muon स्टोरेज रिंग में जितने चक्कर लगाते है, उस रेट को सायक्लोट्रॉन फ्रिक्वेन्सी ( `\omega_{c} `) कहा जाता है ।  अगर muon के प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी( `\omega_{s} `) से muon की सायक्लोट्रॉन फ्रिक्वेन्सी( `\omega_{c} `) को subtract किया जाए तो हमे anomalous precession frequency ( `\omega_{a} `)मिलती है ।

`\omega_{a}=\omega_{s} - \omega_{c}= (\frac{g-2}{2})\frac{eB}{mc}=\a_{\mu}\frac{eB}{mc}`

यहां `\a_{\mu}` anomalous magnetic moment है ।

और `\a_{\mu}=\frac{g-2}{2}` 


उपर के फॉर्मूला में अगर g की कीमत 2 रखी जाए तो  `\omega_{a} ` जीरो हो जाएगा । यानी muon की सायक्लोट्रॉन फ्रिक्वेन्सी और स्पिन   प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी सेम हो जाएगी। अगर g की कीमत 2 से ज्यादा है , तब muon की स्पिन प्रीसेशन फ्रीक्वेंसी , सायक्लोट्रॉन फ्रिक्वेन्सी से ज्यादा होगी

स्टोरेज रिंग में muon लाईट के स्पीड से घूमते रहते है। Muon का lifetime सिर्फ 2.2 मायक्रोसेकड़ का ही होता है। लेकिन हाई स्पीड की वजह से muon के लिए टाइम डायलेट होता है , और वो लगभग 64 मायक्रोसेकड़ तक जीते है। यही एक कारण है , कि muon  हज़ारों बार रिंग में चक्कर लगा पाते है। पॉजिटिव चार्ज Muon decay होकर पॉझीट्रॉन और दो टाइप के न्यूट्रिनो बनते है। स्टोरेज रिंग में लगे डिटेक्टर्स की मदद से इन पॉझीट्रॉन का स्टडी किया जाता है । पॉझीट्रॉन के स्टडी से हमे फ्रीक्वेंसी `\omega_{a} ` की वैल्यू मिलती है ।अभी हमे  `\omega_{a} ` , B,m,c,e की वैल्यू पता है । उपर दिए गए फॉर्मूला में ये सभी कीमत डालकर anomalous magnetic moment ( `\a_{\mu}`)  को कैलकुलेट किया जा सकता है। जिससे हमे g फैक्टर की वैल्यू कितनी है ये पता चलेगा । और g की वैल्यू कितनी बदल रही है ये भी पता चलेगा।

जो स्पेस हमे एम्प्टी लगता है , असल में वो एम्प्टी नहीं होता । एम्प्टी स्पेस में पार्टिकल्स बनते है और बहुत बहुत ही कम टाइम में नष्ट भी हो जाते है , इन पार्टिकल्स को वर्चुअल पार्टिकल्स कहा जाता है। 

स्टोरेज रिंग में चक्कर लगाते समय muon एैसे ही वर्चुअल पार्टिकल्स के साथ इंटरैक्ट होता है , जिनका जीवन बहुत ही कम समय का होता है। वर्चुअल पार्टिकल्स के साथ होने वाले इस interaction का परिणाम muon के g फैक्टर के ऊपर होता है। muon के g फैक्टर में होने वाले इस बदलाव के कारण muon का  precession का स्पीड  फास्ट या स्लो होता है। इन वर्चुअल पार्टिकल्स में कुछ पार्टिकल्स एैसे भी हो सकते है , जिनके बारे में हमे पता नहीं है। लेकिन उनका इफेक्ट muon के g फैक्टर के उपर हो सकता है , और g फैक्टर में हुए बदलाव से हमे उन पार्टिकल्स के बारे में जानकारी मिल सकती है।

g-2 एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट


थिअरी के अनुसार Muon जैसे पॉइंट लाइक पार्टिकल के लिए g फैक्टर की कीमत २ होनी चाहिए । लेकिन वर्चुअल पार्टिकल्स के साथ होने वाले इंटरेक्शन की वजह से g की वैल्यू थोड़ी बदलती है। Muon का g फैक्टर अपेक्षित वैल्यू २ से कितना बदला है, इसकी आईडिया हमे फॉर्मूला g-2 से मिलती है। इससे आप ये तो समझ ही गए होंगे कि muon के साथ किए गए इस एक्सपेरिमेंट को muon g-2 experiment नाम क्यू पड़ा होगा।

 थिअरी में जितने भी वर्चुअल पार्टिकल्स है उनकी muon के साथ इंटरेक्शन होकर , muon का g फैक्टर कितना बदलता है, ये थिअरी से निकाला गया । थिअरी से मिले g फैक्टर की कीमत  2.00233183620  है।  Fermilab में किए गए एक्सपेरिमेंट से मिली g फैक्टर की कीमत 2.00233184080 है। इन नंबर को देखकर हम बता सकते है कि g फैक्टर को कितने प्रिसाइजली कैलकुलेट किया गया है। यही नहीं थिअरी और एक्सपेरिमेंट से मिले g फैक्टर की कीमत में कुछ तफावत भी दिखती है । लेकिन fermilab में किए गए एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट 20 साल पहले  Brookhaven National Laboratory में किए गए एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट से सहमति दर्शाते है।

थिअरी और एक्सपेरिमेंट में तफ़ावत होना तीन चीजें दर्शाता है कि , एक तो हमने जो एक्सपेरिमेंट किया है वो इतना प्रीसाइज नहीं है। या फिर हमे हमारे थिअरी में कुछ सुधार करना जरूरी है। या शायद हम g की कीमत थिअरी का यूज करके ठीक से नहीं निकाल पाए।

थिअरी और एक्सपेरिमेंट में तफ़ावत होना एक संकेत है , की नेचर में नए पार्टिकल्स होने की संभावना है , जो अब तक हमारे थिअरी का हिस्सा नहीं थे।

पांच रन (रन -1 , रन -2 , रन -3 ,रन -4 ,रन -5 )  में muon g-2 experiment का डेटा लिया जाने वाला है।अभी तक इस एक्सपेरिमेंट के  6% से कम डेटा का ही विश्लेषण किया गया है। 7 अप्रैल 2021 को रन -1 डेटा के विश्लेषण के परिणाम घोषित और प्रकाशित किए गए। बचे हुए रन के डेटा का विश्लेषण होने के बाद ही ये पूरी तरह से स्पष्ट होगा कि muon के g फैक्टर में होने वाला बदलाव नए फिजिक्स की तरफ इशारा कर रहा है या फिर हमारी मौजूदा थिअरी सही है और उसमें कोई बदलाव करने की जरूरत नहीं है।







   References  :-


[1] The physicis of g-2. (n.d.). Fermilab. Retrieved July 5, 2021, from https://muon-g-2.fnal.gov/the-physics-of-g-2.html


[2]First results from Fermilab’s Muon g-2 experiment strengthen evidence of new physics. (2021, April 7). Fermilab. https://news.fnal.gov/2021/04/first-results-from-fermilabs-muon-g-2-experiment-strengthen-evidence-of-new-physics/


[3]Muon g-2. (n.d.). Wikipedia. Retrieved July 5, 2021, from https://en.m.wikipedia.org/wiki/Muon_g-2


[4]Fermilab. (2021, April 7). Muon g-2 experiment finds strong evidence for new physics [Video]. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=ZjnK5exNhZ0&feature=youtu.be


[5]Fermilab. (2021b, May 3). What Can Wobbling Muons Tell Us About the Particles in our Universe? [Video]. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=PpZo6ZZ-PBI&feature=youtu.be


[6]Fermilab. (2021b, April 7). Scientific Seminar: First results from the Muon g-2 experiment at Fermilab [Video]. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=81PfYnpuOPA&feature=youtu.be

[7]Krauss, T. O. [The Origins Podcast]. (2021a, April 11). Measuring g-2 of the muon and new physics explained, Part 1. [Video]. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=mH-YYwVVAeY&feature=youtu.be


[8]Krauss, T. O. [The Origins Podcast]. (2021b, April 11). Measuring g-2 of the muon and new physics explained, Part 2 [Video]. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=Qn2UQBsGcZ0&feature=youtu.be