Double slit experiment | Curiosity73
Apparatus_of_double_slit_experiment
इमेज में डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट एक्सपेरिमेंट का सेट अप है । जिसमें S1 वेव का सोर्स है जब ये वेव दो स्लिट्स से गुजरते है हमे दो वेव के सोर्स मिलते है एक सोर्स b और दूसरा सोर्स c । सोर्स b और सोर्स c से आने वाले वेव आपस में इंटरफेयर होते है और स्क्रीन पर interference पैटर्न मिलता है। यानी अल्टरनेटिवली ब्राइट और डार्क पट्टियां मिलती है। ( Image by Lacatosias/CC BY 3.0 )





इस आर्टिकल में हम डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट क्या है इसकी जानकारी हासिल करेंगे.आर्टिकल के आखिर तक डबल स्लिट प्रयोग को आप अच्छे से समझ पाएंगे .

वॉटर वेव्स के साथ डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट

Interference की कंसेप्ट को समजने के लिए हम वॉटर वेव्स का इस्तेमाल करेंगे। और ये एक्सपेरिमेंट हम किसी बड़े तालाब में करेंगे। एक्सपेरिमेंट के लिए हमे वॉटर वेव्स चाहिए , तो हम एक ऐसी मशीन का इस्तेमाल करेंगे जो पानी में वाइब्रेट होकर सर्कुलर वेव्स बनाती है । काफी उस तरह जैसे किसी तालाब में पत्थर फेंकने के कारण बनते है ।
 
उसी के साथ इस मशीन  के ठीक सामने कुछ दूरी पर एक दीवार भी है , जिसमें दो दरारे है। इस दीवार के आगे कुछ दूरी पर तालाब का किनारा है जहां पर वॉटर वेव्स टकराने से उनको अब्सोर्ब किया जाता है , ताकि वो रिफ्लेक्ट ना हो सके।

तो एक्सपेरिमेंट क्या है , जैसे ही हमारी मशीन वाइब्रेट होने लगती है तब तालाब में सर्कुलर वॉटर वेव्स बनते है । जब ये वेव्स सामने वाले दीवार तक पोहचते है , तब वेव्स दोनो दरारों (double slit )से गुजरते है। दो दरारों(double slit) की वजह से एक वेव दो वेव्स में विभाजित होता है। क्युकी  हर एक दरार किसी वॉटर वेव्स के सोर्स की तरह काम करती है और हर एक दरार यहां अपना खुदका सर्कुलर वॉटर वेव्स बनाती है । यानी हर एक दरार यहां वेव बनाने की मशीन की तरह काम करती है। और इन दो दरारों को इस प्रयोग में इस्तेमाल करने का हमारा मकसद भी यही है की हमे दो वॉटर वेव्स मिल सके ।

Constructive_interference


अब ये दोनों वेव आपस में मिलकर  तालाब में कुछ पैटर्न बनाते है जिसे interference पैटर्न भी कहते है ( उपर से 4 नंबर के इमेज में आप ये पैटर्न देख सकते है। )। एक वेव का ऊपर उठा हुआ  हिस्सा जो किसी हिल की तरह दिखता है और जिसे हम क्रेस्ट(crest) भी कहते है , दूसरे वेव के क्रेस्ट(crest) से मिलकर वेव को उस जगह पर काफी बड़ा करता है। इस इफेक्ट को ही कंस्ट्रक्टिव इंटरफेरंस (constructive interference )बोलते है । वहीं एक वेव का नीचे गया हुआ गहरा हिस्सा जो किसी दरी की तरह दिखता है और जिसे ट्रफ(trough) भी कहते है, दूसरे वेव की ट्रफ(trough) से मिलकर काफी गहरी दरी(ट्रफ) बनाता है । इसे भी constructive  interference बोलते है। Constructive interference में दो वेव मिलकर काफ़ी बड़ा वेव बनाते है। कंस्ट्रक्टिव इंटरफेरंस को आप इमेज नंबर 2 से समझ सकते है।

Destructive_interference


और जिस जगह पर एक वेव का ट्रफ (वॉटर वेव का नीचे गया हुआ हिस्सा) दूसरे वेव के क्रेस्ट (वॉटर वेव का उपर उठा हिस्सा ) से मिलती है वहां वॉटर  कुछ भी मोशन नहीं करता (यानी वेव ना तो उपर उठता है और ना ही नीचे जाता है) । इसे है डिसट्रकटिव इंटरफेरंस (destructive interference )बोलते हैं क्युकी की इस जगह पर दोनो वेव का इफेक्ट ऐसा है कि वेव पूरी तरह से नश्ट हो गए है । डिसट्रकटिव  इंटरफेरंस को आप इमेज 3 से समझ सकते है।

Interference_of_water_wave
दो वॉटर वेव इंटरफेयर होकर ऊपर जैसा पैटर्न बनाते है । पॉइंट A पर destructive interference हुआ है और पॉइंट B पर constructive Interference (इमेज Dr. Derek Muller (Veritasium) के You tube वीडियो का स्क्रीनशॉट है।)


तालाब के किनारे पर खड़े होकर अगर हम वेव के इस पैटर्न को देखेंगे , तो हमे वहां अल्टरनेटिवली constructive और destructive interference मिलता है । यानी वेव अल्टरनेटिवली बड़ा और जीरो होता है । जहां constructive interference हुआ है वहां वेव की इंटेंसिटी ज्यादा है  वहीं जहां destructive interference हुआ है वहां वेव का इंटेंसिटी जीरो है। इस पैटर्न को हम उपर दिए गए इमेज 4 से देख सकते है।

कोई भी दो या दो से ज्यादा वेव जब इस तरह से मिलते है तो वो इसी तरह interference पैटर्न बनाते है । Interference करना वेव का हॉलमार्क है । कहीं पर भी अगर interference हो रहा है यानी वहां पर कोई ना कोई वेव हो सकता है ।

लाईट के साथ डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट

सेम एक्सपेरिमेंट अब हम लाईट के साथ करते है । इस एक्सपेरिमेंट के लिए हम मोनोक्रोमैटिक  लाईट का सोर्स यूज करेंगे। मोनोक्रोमैटिक लाईट सोर्स एक ही कलर की लाईट इमीट करता है। वॉटर वेव्स के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट की तरह ही इस एक्सपेरिमेंट में हमारे पास एक मेटल प्लेट है जो लाईट सोर्स के सामने कुछ दूरी पर रखी गई है जिसमें दो दरारे(slits) है, और ये दरारे(slits) काफी काफी छोटी है । क्युकी लाईट वेव वॉटर वेव की तुलना में काफी काफी छोटे है  । आप शायद ये समझ ही गए होंगे कि हमने यहां दो दरारे क्यू बनाई । क्युकी इन दरारों का इस्तेमाल करके हमे दो लाईट के सोर्स मिलने वाले है ।

इस मेटल प्लेट के आगे स्क्रीन रखी हुई है जहां ये दो लाईट के सोर्स मिलकर क्या पैटर्न बनाते है हम ये देखेंगे।

Interference_pattern_of_sodium_light
सोडियम लाईट के साथ डबल स्ली ट एक्सपेरिमेंट करने पर हमे कुछ ऐसा interference पैटर्न मिलता है । स्क्रीन पर अल्टरनेटिव ली डार्क और ब्राइट पट्टियां मिल रही है।जैसे कि हमने देखा कि वाटर वेव्स के साथ भी कुछ ऐसा ही होता है। ( Image by Epzcaw /CC BY 3.0)


जब ये एक्सपेरिमेंट किया गया तो ये पाया गया कि स्क्रीन पर अल्टरनेटिवली हमें ब्राईठ और डार्क पट्टियां मिलती है, जिन्हे फ्रिंज भी कहते है (इस पैटर्न को आप उपर दिए गए इमेज नंबर 5 से देख सकते है)। लाईट की इंटेंसिटी अल्टरनेटिवली कम ज्यादा होती है कुछ उसी तरह जैसे हमने वॉटर वेव्स के साथ देखा था ।

लाईट को अगर पार्टिकल माना जाए तो स्क्रीन पर मिली डार्क और ब्राइट पट्टियों को यानी interference पैटर्न को एक्सप्लेन नहीं किया जा सकता है । Interference पैटर्न को एक्सप्लेन करने के लाईट का वेव होना जरूरी है।

  यहां पर interference हुआ है । यानी लाईट एक वेव है । 

दोनो दरारों से आने वाले लाईट वेव आपस में इंटरफेयर होते है इसीलिए स्क्रीन पर हमे ये पैटर्न मिलता है।स्क्रीन पर जहां ब्राईठ पट्टी मिली है यानी जहां लाईट की इंटेंसिटी ज्यादा है, वहां कंस्ट्रक्टिव interference हुआ है। और जहां डार्क पट्टी है  वहां destructive interference हुआ है यानी दो वेव एक दूसरे को कैंसल कर रहे है । इसे हम ऐसा भी बोल सकते है कि लाईट लाईट में एड होकर या तो अंधेरा बनाएगी या ब्राइट लाईट । बिलकुल वॉटर वेव की तरह। 


Christiaan Huygens की तरह Thomas Young भी ये मानते थे कि लाईट एक वेव है। और लाईट एक वेव है इसे उन्होंने 1801 में डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट ( young's double slit experiment ) से दिखा भी दिया । थॉमस यंग का interference एक्सपेरिमेंट  फिजिक्स के 10 ब्यूटीफुल एक्सपेरिमेंट में से एक है ।डबल स्लिट एक्सपेरिमेंट काफी सिम्पल भी है और सिम्पल होने के साथ नेचर के गहरे रहस्सों को उजागर भी करता है।

यहां एक बात पर ध्यान देना जरूरी है , की अभी हम ये जानते है कि लाईट कभी कभी पार्टिकल तो कभी कभी वेव जैसे  बरताव करती है । और लाईट के पार्टिकल को फोटॉन(photon) कहा जाता है।

रेत के कणों के साथ डबल स्लीट(Double Slit) एक्सपेरिमेंट

अभी हम  पार्टिकल्स के साथ सेम एक्सपेरिमेंट करके देखते है। शुरुवात में हम रेत(sand) के कणों के साथ ये एक्सपेरिमेंट करते है। 

अभी सोचिए हमारे पास एक मशीन है जो रेत के कणों को किसी बुलेट कि तरह बाहर फेंकती है । इस मशीन के सामने कुछ दूरी पर एक दीवार है जिसमें दो दरारे है। और इस दीवार के आगे एक आखरी दीवार है जिसमें रेत के कण जाके चिपकते है।और इस दीवार पर हम देखने वाले है की हमे रेत के कणों से कैसा पैटर्न मिलता है।

Double_slit_experiment_with_sand
पार्टिकल्स जैसे रेत के कणों के साथ जब डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट(double slit experiment) किया जाता है , पार्टिकल्स या तो स्लिट वन से गुजरते है या  स्लीट टू से इसीलिए स्क्रीन पर दोनो स्लीट के बराबर सामने रेत के कणों की दो पट्टियां मिलती है । ( इमेज The Royal institution के You tube वीडियो का स्क्रीनशॉट है जहां Neil johnson ने रेत के कणों के साथ डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट किया था।)


एक्सपेरिमेंट पूरा होने के बाद हमे दीवार पर रेत की सिर्फ दो पट्टियां मिलती है ,जो दो दरारों के बिलकुल सामने होती है जिसे आप उपर दिए गए इमेज में देख सकते है। और पार्टिकल्स के साथ हम कुछ ऐसा ही एक्सपेक्ट कर सकते है। एक पार्टिकल या तो  पहले स्लीट से स्क्रीन तक जाएगा या फिर दूसरे स्लीट से । क्युकी पार्टिकल्स पार्टिकल्स है ना की वेव जो इंटरफेयर होगे । जैसे कि हम देख सकते है पार्टिकल्स की केस में interference नहीं हुआ ।

इलेक्ट्रॉन के साथ डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट(Double slit experiment)

Double_slit_experiment_with_electron
पार्टिकल्स जैसे इलेक्ट्रॉन के साथ डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट करने पर हमे स्क्रीन पर interference पैटर्न मिलता है। बिलकुल वैसे ही जैसे किसी वॉटर या लाईट वेव के साथ एक्सपेरिमेंट करने पर मिलता है।  ( Image by NekoJaNekoJa / CC BY 4.0 )


चलो अभी सेम एक्सपेरिमेंट हम इलेक्ट्रॉन(electron) के साथ करते है । इलेक्ट्रॉन बहुत बहुत ही छोटे पॉइंट लाइक पार्टिकल है। रेत से कई कई गुना छोटे , इसीलिए रेत की तरह आंखों से देखना उनको मुश्किल है । ये ध्यान में रखते हुए हम एक्सपेरिमेंट कुछ बदलाव करेंगे ज्यादा नहीं बस थोड़ा ही ।

तो सबसे पहले हम डबल स्लीट्स एक्सपेरिमेंट(Double slit experiment) के दो स्लीट्स की साइज काफी काफी छोटी कर देंगे । इलेक्ट्रॉन इतने छोटे है की हम उन्हें देख नहीं सकते जब वो स्क्रीन तक आएंगे तो हमे कैसे पता चलेगा ?। इसीलिए यहां हम फोटो सेंसिटिव स्क्रीन इस्तेमाल करेंगे। जब इलेक्ट्रॉन स्क्रीन के किसी एक हिस्से तक  पहुंचेगा तब स्क्रीन का वो हिस्सा लाईट का फ़्लैश इमीट करेगा । और हम समझ जाएंगे की इलेक्ट्रॉन स्क्रीन तक आ गया है।

एक्सपेरिमेंट के लिए हमे काफी सारे  इलेक्ट्रॉन चाहिए । इलेक्ट्रॉन के सोर्स के तौर पर हम यहां  इलेक्ट्रॉन गन का इस्तेमाल करेंगे। इलेक्ट्रॉन गन काफी नॅरो इलेक्ट्रॉन बीम बनाती है । और इस बीम के इलेक्ट्रॉन सभी एक ही डायरेक्शन में ट्रैवल करते है जिसे साइंटिफिक भाषा में कोलीमेटेड बीम ( collimated beam) भी कहा जाता है।  इस तरह के इलेक्ट्रॉन गन को आपने किसी पुराने टीवी के पीछे के बड़े ट्यूब में देखा होगा ।

एक्सपेरिमेंट का सेट अप ऊपर दिए गए एक्सपेरिमेंट्स की तरह ही है । पहले हमारा इलेक्ट्रॉन सोर्स उसके बाद दो दरारों वाली वॉल और उसके बाद लास्ट में स्क्रीन। जिसे आप ऊपर दिए गए इमेज में देख सकते है।

एक्सपेरिमेंट की प्रोसीजर भी सेम ही है । इलेक्ट्रॉन सोर्स से निकलते है दो दरारों से गुजरते है और स्क्रीन तक जा पहुंचते है। आखिर में बस हमे स्क्रीन पर कैसा पैटर्न मिलता है उसे देखना है और उससे निष्कर्ष निकालने है।

जब ये एक्सपेरिमेंट किया गया और स्क्रीन पर मिले पैटर्न का विश्लेषण किया गया ,रिजल्ट काफी चौंकाने वाले थे । इलेक्ट्रॉन एक पार्टिकल है बिलकुल किसी रेत की तरह बस उससे काफी काफी छोटा है लेकिन पार्टिकल है । तो इलेक्ट्रॉन से हम यही उम्मीद रख सकते है कि , जैसे रेत के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट में हमे सिर्फ रेत की दो पट्टियां मिली थी इलेक्ट्रॉन के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट में भी हमे सिर्फ इलेक्ट्रॉन कि दो पट्टियां ही मिलेगी बिलकुल दरारों के सामने । 

Double_slit_experiment_with_electron
Dr. Tonomura ने इलेक्ट्रॉन्स के साथ जो डबल स्लीट एक्सपेरिमेंट किया तो उन्हें स्क्रीन पर कुछ ऐसा interference पैटर्न मिला। हर एक फोटो में इलेक्ट्रॉन की संख्या बढ़ती जा रही है । इलेक्ट्रॉन की संख्या फोटो (a) 11 (b)200 (c)6000 (d)40000 (e)140000 हैं। जैसे कि हम देख सकते है कि interference पैटर्न बिलकुल वॉटर वेव्स और लाईट वेव्स के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट की तरह ही है।( Image by Dr. Tonomura / CC BY 3.0 )

 

लेकिन इस एक्सपेरिमेंट के रिजल्ट एकदम विपरीत थे । लाईट और वॉटर वेव्स के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट की तरह ही स्क्रीन पर इलेक्ट्रॉन कि अल्टरनेट ब्राइट और डार्क फ्रिंजेस (पट्टियां) मिली । डार्क रिजन में इलेक्ट्रॉन काफी कम गए थे वहीं ब्राइट रीजन तक काफी सारे इलेक्ट्रॉन पहुंचे थे। जिसे आप ऊपर दिए हुए इमेज में देख सकते है।

अगर इलेक्ट्रॉन का सोर्स एक टाइम पे एक ही इलेक्ट्रॉन बाहर छोड़े यानी स्क्रीन तक एक टाइम पे एक ही इलेक्ट्रॉन आएगा, तब भी हमे स्क्रीन पर ऊपर जैसा ही interference पैटर्न मिलता है।

लेकिन  दोनो स्लीट में से एक को बंद किया जाए तो हमे स्क्रीन पर interference पैटर्न नहीं मिलता , बल्कि स्क्रीन पर इलेक्ट्रॉन कि सिर्फ एक पट्टी मिलती है बिलकुल जो स्लीट ओपन है उसके सामने।


पार्टिकल के साथ किस प्रकार का वेव जुड़ा है।

 Interference पैटर्न मिलना एक संकेत है कि वहां किसी ना किसी प्रकार का वेव है। 

   मैक्स बॉर्न नामक वैज्ञानिक का मानना ये था कि , इलेक्ट्रॉन के साथ जुड़ा एक वेव है । लेकिन ये वेव किस प्रकार का है तो उनके अनुसार ये प्रोबेबिलिट वेव है । जिस जगह पर वेव बड़ा है उस जगह पर इलेक्ट्रॉन मिलने के चांसेस ज्यादा है वहीं जिस जगह पर वेव छोटा है उस जगह पर इलेक्ट्रॉन मिलने के चांसेस कम है।

 तो अगर प्रोबेबिलिटी वेव का इस्तेमाल करके हम उपर मिले interference पैटर्न को एक्सप्लेन करने की कोशिश करेंगे तो वो कुछ इस तरह होगा । 

 जब ये प्रोबेबिलिटी वेव दो दरारों से गुजरता है । दो दरारों की वजह से हमे दो वेव मिलेंगे। फिर ये दो वेव आपस में इंटरफेयर होते है बिलकुल उसी तरह जैसे वॉटर और लाईट वेव इंटरफेयर हुए थे । और हमे स्क्रीन पर interference पैटर्न मिलता है।

     जहा कंस्ट्रक्टिव इंटरफेरंस (constructive interference) हुआ है वहां इलेक्ट्रॉन जाने के चांसेस ज्यादा है वहां ब्राइट फ्रिंज मिली। वहीं जहां डिसट्रकटिव इंटरफेरंस (destructive interference) हुआ है वहां दो वेव एक दूसरे को कैंसल कर रहे है । इसीलिए वहां इलेक्ट्रॉन के जाने के चांसेस जीरो है इसीलिए वहां पर डार्क फ्रिंज मिली।

लेकिन अगर हम ये सवाल उठाए की इलेक्ट्रॉन पहली दरार से गया या फिर दूसरी दरार से।

 जैसे ही हम किसी इंस्ट्रूमेंट का इस्तेमाल करके ये देखने की कोशिश करते है कि इलेक्ट्रॉन पहले स्लीट से गया या फिर दूसरे स्लीट से , स्क्रीन पर हमे interference पैटर्न नहीं मिलता। और जैसे ही इलेक्ट्रॉन देखना बंद करते है , स्क्रीन पर फिर से interference पैटर्न दिखने लगता है। 

किसी प्रकार से अगर हमने ये देखा की इलेक्ट्रॉन पहली दरार से गया है या दूसरी , तो स्क्रीन पर हमे सिर्फ इलेक्ट्रॉन कि दो पट्टिया मिलती है बराबर दो दरारों के सामने । जैसे हमे रेत के साथ किए गए एक्सपेरिमेंट में मिली थी । इलेक्ट्रॉन की अल्टरनेट जो ब्राइट और डार्क पट्टियां मिल रही थी वो अचानक से गायब हो जाती है।

यानी सिर्फ इलेक्ट्रॉन को देखने की क्रिया से interference पैटर्न नष्ट हो गया। Electrons का वेव जैसा बेहवीयर ख़तम हो गया ।

 तो इस सवाल का आंसर क्या है , की इलेक्ट्रॉन पहले  slit से गया या दूसरे slit से । 

इसका जवाब वैज्ञानिक रिचर्ड फेयमन (Richard Feynman) ने  कुछ ऐसा दिया[1]

अगर किसी के पास ऐसा इंस्ट्रूमेंट है जो ये निर्धारित कर सके कि इलेक्ट्रॉन पहले होल से गया है या दूसरे से, तो कोई ये कह सकता है की  इलेक्ट्रॉन या तो पहले होल  से या दूसरे होल से जाता है। लेकिन जब कोई ये बताने की कोशिश नहीं करता कि इलेक्ट्रॉन कहा से जा रहा है , और जब एक्सपेरिमेंट में इलेक्ट्रॉन को डिस्टर्ब करने वाली कोई चीज नहीं होती , तब कोई यह नहीं कह सकता कि एक इलेक्ट्रॉन पहले होल से होकर जाता है या दूसरे होल से होकर जाता है।





References

[1]Feynman, R. (n.d.). The Feynman lectures on Physics (new millennium edition, Vol. 3) [E-book]. Basic Books.

[2]Ghatak, A. (2017). Optics (6th ed.). McGraw-Hill Education.

[3]World Science Festival. (2014, June 20). Measure for Measure: Quantum Physics and Reality. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=GdqC2bVLesQ&feature=youtu.be

[4]Muller, D. (2013, February 19). The Original Double Slit Experiment. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=Iuv6hY6zsd0&feature=youtu.be

[5]The Royal Institution. (2019, February 1). Wave-Particle Duality Explained with Double Slit Experiments - Christmas Lectures with Neil Johnson. YouTube. https://www.youtube.com/watch?v=O81Cilon10M&feature=youtu.be