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Laser ( Image from Wikimedia / CC BY 3.0) |
लेजर का उपयोग (Applications of laser) कहा कहा होता है क्या आपको पता है . आपने लेज़र
को एक खिलोने की तरह देखा होगा लेकिन लेज़र एक खिलोने से भी बढ़कर है .लेज़र का
इस्तेमाल ( Uses of
laser light ) अलग
क्षेत्रों में होता है जैसे कम्युनिकेशन , मेडिसिन , कटिंग करने में , वेल्डिंग
करने में , मिलिट्री में , बारकोड स्कैनिंग करने के लिए , रिसर्च करने में ,
सर्जरी करने के लिए , ये और बहुत सारे लेज़र के उपयोग है .
ऐसा
बहुउपयोगी लेज़र कैसे काम करता है और उसकी प्रॉपर्टीज क्या है इसे हम आसन भाषा में
इस आर्टिकल में समजेंगे.
लेज़र का फुल फॉर्म क्या है ? ( what is full form of laser ?)
तो सबसे पहले लेज़र शब्द का फुल फॉर्म ( full form of laser ) क्या है इसे
हम देखते है . लेज़र का फुल फॉर्म है , “ लाइट एम्प्लिफीकेशन
बाय स्टीम्युलेटेड एमिशन ऑफ़ रेडिएशन ( light amplification by stimulated emission of radiation ) “ . इसका मीनिंग क्या है यह आपको इस
आर्टिकल के आखिर तक अच्छे से समझ में आयेगा .
पहला लेज़र किसने बनाया ? ( who invented laser ? )
क्या आपको पता है लेजर का आविष्कार किसने किया था ?. साल 1917 में अल्बर्ट आइंस्टीन ने पहली बार लेज़र की थ्योरी बनाई . इसके बाद पहला लेज़र Theodore H. Maiman ने 1960 में बनाया था . Theodore H. Maiman ने रूबी क्रिस्टल से पहला लाल कलर का लेजर बनाया था .
लेज़र क्या है ?( what is laser ?)
लेज़र. (laser) एक डिवाइस है जो लाइट एमिट करता है लेकिन
लेज़र हमारे घर में लगाए बल्ब से काफी अलग होता है .
ऐसी कौनसी प्रॉपर्टीज है जो लेज़र को लाइट बल्ब से
अलग बनाती है ? इन्हें हम अब एक एक करके देखते है .
properties of laser light :-
1) coherence
लेज़र लाइट coherent होती है , यानी लेज़र से निकलने वाली
लाइट के सभी वेव्स के पीक (peak) साथ में लाइन अप रहते है ( सभी लाइट वेव्स सेम
फेज में रहते है.)
२) Directionality
लेज़र(laser) लाइट का एक नैरो बीम बनाता है . हमारे
सामान्य बल्ब से निकली लाइट के किरण सभी दिशाओ में जाते है लेकिन लेज़र से निकलने वाली लाइट के किरण एक ही दिशा में आगे बढ़ते है . यानी लेज़र की लाइट बहुत ही कम स्प्रेड
होती है . लेज़र लाइट बिना स्प्रेड हुए काफी बड़े डिस्टेंस ट्रेवल कर सकती है .
3) Monochromaticity
लेज़र लाइट monochromatic होती है . यानी लेज़र से निकलने वाली
लाइट एक ही कलर ( वेवलेंथ ) की होती है .
4) Intensity
लेज़र
लाइट हाई इंटेंसिटी (ज्यादा ब्राइट होती है) की भी होती है . लेज़र एक छोटे से
एरिया में बहूत सारी एनर्जी कॉन्संट्रेट करता
है.
यह सभी प्रॉपर्टीज लेज़र को हमारे सामान्य बल्ब से
अलग बनती है .
लेज़र काम कैसे करता है ?(How laser work )
लेज़र कैसे काम करता है(how laser work ) ये जानने से पहले हम कुछ
थ्योरी समझ लेते है , जिसका उपयोग हमे लेज़र कैसे काम करता है ये जानने के लिए होगा .
Spontaneous Emission
हम सभी को atoms क्या है ये पता है , हमारे आसपास की सभी चीजे atoms से ही बनी है
. हम सभी ने ये पढ़ा है की एटम के अंदर एक न्यूक्लियस ( न्यूक्लियस प्रोटोन और
न्यूट्रॉन से बना हुआ होता है ) होता है और न्यूक्लियस के इर्द-गिर्द घुमने वाले
इलेक्ट्रॉन्स होते है .
एटम के अंदर इन इलेक्ट्रॉन्स की अलग अलग एनर्जी
होती है . इलेक्ट्रॉन्स जब लोवेस्ट पॉसिबल एनर्जी लेवल में होते है , तो उसे
हम एटम उसके ग्राउंड स्टेट में है ऐसा बोलते है . जैसे ही इलेक्ट्रॉन को पर्याप्त
एनर्जी मिलती है इलेक्ट्रान(electron) हायर एनर्जी लेवल में जम्प करता है ( यानि इलेक्ट्रान
की एनर्जी बढ़ती है ) . इसे हम एटम उसके एक्स्सायटेड स्टेट में है ऐसा भी बोलते है .
इलेक्ट्रान ज्यादा समय तक हायर एनर्जी लेवल में
नहीं रहता है कुछ समय हायर एनर्जी लेवल
में रहकर इलेक्ट्रान तुरंत ग्राउंड स्टेट में आ जाता है . इस प्रोसेस में दो
एनर्जी लेवल के डिफरेंस जितनी एनर्जी लाइट के फॉर्म में एमिट की जाती है . इसे स्पॉनटैंनिअस इमिशन (spontaneous emission) बोलते है .
Stimulated Emission
लेज़र बनाते समय हमारे पास एक मटेरियल होता है
जिसे लेसिंग मटेरियल भी बोलते है . लेसिंग मटेरियल सॉलिड , लिक्विड या गैस भी हो
सकता है. लेसिंग मटेरियल के atoms को लाइट , करंट या फिर दुसरे लेज़र का इस्तेमाल
करके एक्साइट किया जाता है .
लाइट को चालू करके लेसिंग मटेरियल के atoms को उनके
एक्साइटेड स्टेट में भेजा जाता है . जब ग्राउंड स्टेट की तुलना में काफी सारे atoms उनके एक्सायटेड
स्टेट में होते है , तब इस सिचुएशन को population inversion बोलते है. यहाँ पर अगर हमने उचित एनर्जी का फोटॉन ( फोटॉन लाइट का पार्टिकल होता है ) इन atoms के बिच भेजा तो इस फोटॉन की वजह से एक्सायटेड atom उसके ग्राउंड
स्टेट में आकर एक फोटॉन एमिट करता है . एमिटेड फोटॉन हमने भेजे हुए फोटॉन की तरह
ही होता है . यानी दोनों का कलर सेम होता है . दोनो का फेज सेम होता है और दोनो सेम ही डायरेक्शन में आगे
बढ़ते है . इस प्रकार के एमिशन को स्टीम्युलेटेड एमिशन ( stimulated emission )बोलते है .
अभी इन दो फोटॉन का इस्तेमाल करके दुसरे एक्सायटेड atoms को भी उकसाया जाता है जिससे वो भी फोटॉन एमिट करते है और ग्राउंड स्टेट में आ जाते है . ऐसा करते
करते आखिर में हमे काफी सारे फोटॉन मिलते है जो की सेम कलर के , सेम फेज में होते है और सेम डायरेक्शन में आगे बढ़ते है .
हमने यहाँ पर स्टीम्युलेटेड एमिशन का इस्तेमाल करके लाइट को अम्प्लीफ़ाय ( amplify) किया और ऐसे
ही हमे लेज़र की लाइट मिलती है .
रूबी लेज़र ( Ruby Laser )
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Ruby laser construction ( Image by Mcgill ) |
रूबी लेज़र (Ruby laser) में लेसिंग मटेरियल रूबी क्रिस्टल यूज़
किया जाता है . रूबी रॉड के अराउंड फ़्लैशट्यूब को किसी कॉइल की तरह घुमाया जाता है
. फ़्लैशट्यूब एक लाइट का सोर्स है जिसका इस्तेमाल करके रूबी क्रिस्टल के atoms को एक्साइट
किया जाता है . फ़्लैशट्यूब किसी कैमरा के फ़्लैश लैंप की तरह काम करता है. रूबी रॉड
को दो मिरर के बिच में रखा जाता है . इसमें से एक मिरर पारशीअली सिल्वर होता है .
ये हो गया हमारे लेज़र का कंस्ट्रक्शन अब लेज़र काम कैसे करता है इसे हम देखते है .
जब भी फ़्लैशट्यूब फ़्लैश होती है रूबी क्रिस्टल के atoms एक्साइट होते है . कुछ atoms तुरंत ही ग्राउंड स्टेट में आते है और लाइट का फोटॉन एमिट करते है . लाइट के ये फोटॉन दो मिरर के बिच में आगे पीछे घूमते रहते है और साथ में एक्सायटेड atoms को उकसाते है ताकि वो ग्राउंड स्टेट में आये और फोटॉन एमिट करे . यानि यहाँ पर स्टीम्युलेटेड एमिशन से लाइट अम्प्लीफ़ाय ( amplify) होती है . ये सभी फोटॉन एक ही कलर के होते है , सेम फेज में होते है और एक ही डायरेक्शन में आगे बढ़ते है . जब ये फोटॉन आगे पीछे मिरर के बिच में घूमते रहते है तब कुछ फोटॉन पारशीअली सिल्वर मिरर से बाहर निकलते है और हमें लेज़र लाइट मिलती है .
रूबी लेजर से निकलने वाली लाईट रेड कलर की होती है. Theodore H. Maiman ने 1960 जो पहला लेजर बनाया वो रूबी लेजर था .
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