shrodinger’s cat एक्सपेरिमेंट एक थॉट एक्सपेरिमेंट है . असलियत में ऐसा कोई भी एक्सपेरिमेंट नहीं किया गया है . ऑस्ट्रियन वैज्ञानिक एर्विन श्रोडिनगर ने यह एक्सपेरिमेंट 1935 में बनाया , सिर्फ अपने दिमाग में ,अपने विचारों में . श्रोडिनगर ने आइंस्टीन को लिखे एक पत्र में इस एक्सपेरिमेंट के बारे में लिखा है .


कोपनहेगन इंटरप्रिटेशन (Copenhagen Interpretation) क्या है ?

बड़ी चीजे जैसे गेंद या कार कैसे बर्ताव करेगी ये बताने के लिए हमारे पास जो थ्योरी है उसे हम क्लासिकल फिजिक्स बोलते है . वही छोटी चीजे जैसे एटम , मॉलिक्यूल कैसे बर्ताव करेंगे इसकी जानकारी हमें क्वांटम फिजिक्स से मिलती है . अगर किसी कार का लोकेशन और स्पीड अभी क्या है ये हमें पता है तो अगले 1 घंटे बाद उसका लोकेशन क्या होगा इसे हम पता कर सकते है . और हम 100 % बता सकते है की कार हमें 1 घंटे बाद उसी लोकेशन पर मिलेगी .

लेकिन क्वांटम फिजिक्स में ऐसा नहीं होता . क्वांटम मैकेनिक्स में किसी छोटे पार्टिकल का लोकेशन और स्पीड अगर हमे पता है तो उसके अगले 1 मिनिट बाद उसका लोकेशन क्या होगा यह हम 100% नहीं बता सकते है. हमारे पास सिर्फ प्रोबैबलिटी होती है . उदहारण के तौर पर A लोकेशन पर पार्टिकल मिलने के चांसेस 40 % है . B लोकेशन पर पार्टिकल मिलने के चांसेस 35 % है . और C लोकेशन पर पार्टिकल मिलने के चांसेस 25 % है .

यहाँ हम 100 % नहीं बता सकते है की पार्टिकल कहा है .यहाँ एक ही टाइम पे पार्टिकल अलग अलग जगह पर है जैसे लोकेशन A , B , C .एक ही टाइम पे अलग अलग जगह पर होने की पार्टिकल की इस अवस्था को सुपरपोजीशन (Superposition) बोलते है . समझिये की अगर C पॉइंट पर हमें पार्टिकल मिला तो हम अब कहेंगे पार्टिकल अब 100 % C पॉइंट पर है .

क्वांटम मैकेनिक्स कैसे काम करता है , ये आप ऊपर दिए गए उदाहरन से समझ गये होंगे . इसे ही कोपनहेगन इंटरप्रिटेशन( Copenhagen Interpretation) कहते है . कोपनहेगन इंटरप्रिटेशन(Copenhagen Interpretation) बनाने में अलग अलग वैज्ञानिकों योगदान रहा है . इसमे नील्स बोहर (Niels Bohr) , वर्नर हायजनबर्ग (Werner Heisenberg ) , मैक्स बोर्न ( Max Born) इनका प्रमुख योगदान रहा है .

Shrodinger’s cat एक्सपेरिमेंट क्या है

क्वांटम मैकेनिक्स का सही अर्थ निकालने में कैसे Copenhagen Interpretation असफल रहा है ये समझाने के लिए श्रोडिनगर ने कैट एक्सपेरिमेंट को बनाया था .

Shrodinger’s cat एक्सपेरिमेंट का सेट अप

shrodinger cat experiment


इस एक्सपेरिमेंट में बिल्ली को एक स्टील के बॉक्स में रखा जाता है . बॉक्स में बिल्ली के साथ बहुत ही कम मात्रा में रेडियोएक्टिव एटम्स रखे जाते है .इतने कम एटम्स रखे जाते है की अगले 1 घंटे में एक एटम रेडिएशन बाहर छोड़कर डीके (decay) होगा , या नहीं होगा .इसके साथ इस रेडिएशन को डिटेक्ट करने के लिए एक डिटेक्टर भी रखा जाता है जिसे गायगर काउंटर बोलते है . गायगर काउंटर से एक हथौड़ा जुड़ा रहता है . और एक जहर की शीशी भी होती है .

जब गायगर काउंटर रेडिएशन डिटेक्ट करता है तब हथौड़ा चलता है ,और जहर की शीशी टूट जाती है, और बिल्ली मर जाती है . जब तक गायगर काउंटर रेडिएशन डिटेक्ट नहीं करता तब तक बिल्ली जिन्दा रहती है . ये है श्रोडिनगर के एक्सपेरिमेंट (shrodinger’s cat experiment ) का पूरा सेट अप .

एक्सपेरिमेंट से श्रोडिनगर क्या कहना चाह रहे थे

रेडियोएक्टिव एटम अगर डीके(decay) होगा तो बिल्ली मर जायेगी और अगर डीके नहीं होगा तो बिल्ली जिन्दा रहेगी . बॉक्स जब हम खोलेंगे तो हमें बिल्ली या तो जिन्दा मिलेगी या मरी हुई मिलेगी . लेकिन जब तक बॉक्स बंद है बिल्ली के साथ क्या हो रहा है इसका जवाब हमें कहा से मिलेगा ? . तो इसका जवाब हमें Copenhagen Interpretation से मिलता है

बॉक्स में मौजूद रेडियोएक्टिव एटम एक क्वांटम पार्टिकल है . जो क्वांटम मैकेनिक्स के रूल्स फॉलो करता है . इसका मतलब जब बॉक्स बंद रहेगा तब Copenhagen Interpretation के अनुसार , एटम एक ही टाइम पे रेडिएशन बाहर भी छोड़ेगा और नहीं भी छोड़ेगा . जिसे हम एटम सुपरपोजीशन अवस्था में है ऐसा बोलेगे . बिल्ली को रेडियोएक्टिव एटम के साथ रखकर श्रोडिनगर ने क्लासिकल ऑब्जेक्ट ( बिल्ली ) को क्वांटम ऑब्जेक्ट (रेडियोएक्टिव एटम ) से जोड़ दिया .

अब बिल्ली का जिन्दा रहना या मर जाना रेडियोएक्टिव एटम पर निर्भर करता है .जब तक बॉक्स बंद है तब तक एटम एक ही टाइम पे रेडिएशन बाहर भी छोड़ेगा और नहीं भी छोड़ेगा . इसके साथ बिल्ली भी एक ही टाइम पे मर भी गयी है और जिन्दा भी है . यानी बिल्ली भी मर जाना और जिंदा रहना इन दो पोसिबिलिटी के सुपरपोजीशन में है . रियल वर्ल्ड में बिल्ली एक ही टाइम पे जिन्दा और मरी हुई नहीं हो सकती है .

हम जब बॉक्स खोलेंगे तो बिल्ली हमें जिंदा मिलेगी या मरी हुई मिलेगी . लेकिन ऐसा कभी नहीं होता की बिल्ली एक ही टाइम आधी जिन्दा और आधी मरी हुई है . श्रोडिनगर ने कहा बिल्ली का एक ही टाइम पे जिंदा और मरा होना अर्थहीन है . इसीलिए श्रोडिनगर के अनुसार कोपनहेगन इंटरप्रिटेशन (Copenhagen Interpretation) में कुछ खामिया है . कोपनहेगन इंटरप्रिटेशन ( Copenhagen Interpretation ) की इस खामी की पूर्ति करने के लिए अलग अलग इंटरप्रिटेशन आगे आये . उसमे से एक है मेनी वर्ल्ड इंटरप्रिटेशन (Many world interpretation ) .